भारतीय नौसेना अकादमी का इतिहास

  •   1954 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी स्थापित होने के पहले भारतीय नौसेना के अधिकारी प्रशिक्षणार्थी गण डार्टमाउथ, युनाइटेड किंगडम् में रॉयल नेवी के साथ अपने चार साल का प्रशिक्षण पूरा करते थे तथा वहाँ से वापस आने के बाद नौसेना में सब लेफ्टिनेंट के रूप में इनकी भर्ती (कमीशन) होती थी। डायरेक्ट एन्ट्री सब लेफ्टिनेंट ( सब लेफ्टिनेंट के रूप में सीधे प्रवेश पाने वाले) ‘बी’ एन्ड ‘डी’ कोच्ची के अधिकारी स्कंध में बुनियादी प्रशिक्षण पाते थे।
  •   1968 तक अधिकारियों की कमी बड़ी चिंता की बात बनी। नौसैनिकों के मामले की तरह रूसी अधिग्रहण (अर्जन) कार्यक्रम की आवश्यकताओं से मेल खाने के लिए भर्ती (प्रवेश) में गति लानी पड़ी। 1975 तक 3500 अधिकारी गण की आवश्यकता ने प्रतिवर्ष 150 कैडेटों को नौसेना में प्रवेश देने की स्थिति खड़ा कर दी। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष 65 से ज्यादा नौसेना कैडेटों को प्रवेश नहीं दे सकने के कारण एक आर.एस.ई.एस (संशोधित विशेष प्रवेश योजना) शुरू करना तथा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से अलग होकर एक नौसेना अकादमी की व्यवस्था करना ज़रूरी निकले। अतः स्थाई रूप से नौसेना अकादमी की व्यवस्था की जाने तक अकादमी को अपने कार्य प्रारंभ करने हेतु एक अस्थाई स्थान की आवश्यकता थी।
  •  1969 में आर.एस.ई.एस को प्रारंभ करने के लिए अनुमोदन प्राप्त हुआ। इस योजना के अंतर्गत 17-20 आयु वर्ग के नौसेना कैडेटों, जिन्होंने इंडर मीडियेट परीक्षा उत्तीर्ण की है, की कार्यपालक शाखा में भर्ती हो सकती थी। यह योजना, एन.डी.ए के एस.ई.एस (विशेष प्रवेश योजना) के बिल्कुल समान थी सिवाय इसके कि एक साल का प्रारंभिक प्रशिक्षण कोच्चिन में पूरा करना था।
  •  अतः मई 1969 में कोच्चिन में एक अस्थाई नौसेना अकादमी की व्यवस्था की गई। जनवरी 1970 में आर.एस.ई.एस का प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ और कार्यपालक शाखा के प्रथम बैच के कैडेट दिसंबर 1970 में नौसेना अकादमी से दीक्षांत (पास आउट) हो गए। नौसेना अकादमी जनवरी 1974 तक आर.एस.ई.एस के कैडेटों को प्रशिक्षण देती रही।
  •  1973 में एन.डी.ए, जे.एन.यु (जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय), नई दिल्ली से जुड़ गई। एन.डी.ए कैडेटों को अपनी अंतिम परीक्षाओं में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण होने पर जे.एन.यु से विज्ञान स्नातक उपाधि प्राप्त होती थी। इसलिए नौसेना अकादमी के आर.एस.ई.एस के कैडेट अपने एन.डी.ए प्रतिस्थनियों से समतुल्य न थें। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि पूर्व स्नातक उम्मीदवारों को प्रवेश देने के बजाय विज्ञान स्नातकों की भर्ती की जाने से खर्च कम होगा और तथा इससे नौसेना अकादमी में उनके प्रशिक्षण की अवधि भी कम हो जाएगी।
  •  1974 में जी.एस.ई.एस (स्नातक विशेष प्रवेश योजना) के प्रथम बैच के कैडेट छः महीने की प्रारंभिक प्रशिक्षण अवधि के लिए नौसेना अकादमी में भर्ती हुए। जबकि प्रारंभिक मंज़ूरी प्रतिवर्ष कुल 80 कैडेटों की प्रशिक्षण दिये जाने के लिए थी, अब नौसेना अकादमी हर छः महीने में 80 कैडेटों को प्रशिक्षण देने लगी।
  •  1974 के नौसेना प्रशिक्षण सुधार के भाग के रूप में यह निर्णय लिया गया कि सभी अधिकारी पाठ्यक्रम का संचालन नौसेना अकादमी में किया जाना चाहिए तथा अकादमी को ‘बी’ एन्ड ‘डी’ स्कूल द्वारा संचालित किये जाने वाले सभी पाठ्यक्रमों को अपनी जिम्मेदारी पर करनी  चाहिए। 1976 में एस.टी.ई (नौसेना प्रशिक्षण स्थापना) के कमीशनिंग के तुरंत बाद सीधी प्रविष्टि सीमैन प्रशिक्षण को गोवा में शिफ्ट करने के पश्चात बी एण्ड डी स्कूल कोच्चिन को बंद करवाना था। नौसेना अकादमी ने 1974 से लेकर कैडेटों के लिए बुनियादी पाठ्यक्रमों को चलाने के अतिरिक्त निम्न लिखित अधिकारी पाठ्यक्रमों को चलाना प्रारंभ कर दिया:

       इंजीनियरिंग एवं इलैक्ट्रिकल ब्रैन्च के डायरेक्ट एन्ट्री अफ़सरों के लिए प्रारंभिक प्रशिक्षण।

       पूर्ति शाखा के अधिकारियों तथा मित्रवान विदेशी नौसेनाओं के अधिकारियों के लिए नौसेना विज्ञान अभिविन्यास पाठ्यक्रम (नेवल साइन्स ऑरिएन्टेशन कोर्स)।

        एस.डी.पी.पी.सी (एस.डी कैडर में एक्टिंग सब लेफ्टिनेंट अफ़सर के रूप में पदोन्नत होकर आने वाले नौसैनिकों के लिए विशेष कार्य पदोन्नति-उत्तर पाठ्यक्रम।

        डी.एम (प्रभागीय एवं प्रबंधन पाठ्यक्रम)।

        लेफ्टिनेंट वॉर कोर्स।

        अप्पर यार्डमैन कोर्स।

        कमान अधिकारी एवं कनिष्ठ कमान्डर पाठ्यक्रम।

      मांडवी में अंतरिम नौसेना अकादमी

  •    1976 तक नौसेना अकादमी इस बात से अवगत हुई कि कैडेटों एवं विभिन्न शाखाओं के एक्टिंग सब लेफ्टिनेंट को अलग से प्रशिक्षण देना लाभदायक नहीं है। अतः यह निर्णय लिया गया कि कार्यपालक शाखा के कैडेटों एवं सभी तकनीकी शाखाओं के एक्टिंग सब लेफ्टिनेंट को समकालिक रूप से प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और इनकी प्रशिक्षणावधि एवं पाठ्यविवरण समान हों। 1976 से इसको कार्यान्वित किया गया।
  •   1976 के पश्चात् तथा नौसैनिकों की सेवा के शर्तों में परिवर्तन से जुड़ी तीसरी वेतन आयोग की सिफारिशों की स्वीकृति से बॉय एन्ट्री स्कीम को त्याग दिया गया तथा डायरेक्ट एन्ट्री मैट्रिकुलेट नौसैनिकों की भर्ती की गई। भा.नौ.पो चिल्का, जिसकी 1980 में कमीशन हो जाने की प्रत्याशा थी, में एक एस.टी.ई होने से प्रशिक्षण कार्य एवं लागत में घटाव ला सकता था।
  •  1970 में प्रशिक्षणार्थियों की संख्या में लगातार वृद्धि होने से नौसेना अकादमी इस बात से अवगत हुई कि अकादमी को ना कोई आवास है या वर्तमान प्रशिक्षण कार्यभार से मेल खाने लायक ना कोई आंतरिक बुनायादी संरचना है। इसलिए एक नयी एवं स्थाई अकादमी के लिए मंज़ूरी प्राप्त करने का निर्णय लिया गया। एस.टी.ई, भा.नौ.पो चिल्का में स्थानांतरित होने के पश्चात अस्थाई नौसेना अकादमी को यथाशीघ्र कोच्चिन से भा.नौ.पो मांडोवी, गोवा में बदलने का निर्णय लिया गया। इसके लिए मांडोवी में कार्यरत एस.टी.ई को अधिकारी-स्तरीय प्रशिक्षण देने लायक नौसेना अकादमी जैसा प्रतिरूप देना अनिवार्य था। अंततः 1986 में नौसेना अकादमी, भा.नौ.पो मांडोवी में स्थानांतरित हुई।

      नयी नौसेना अकादमी के लिए धारणात्मक माँग
 

  •  सीमैनशिप एवं वॉटरमैन शिप प्रशिक्षण के लिए समुद्र या सरोवर के समीप 100 एकड़ जमीन की अनिवार्य आवश्यकता थी और यह जगह नगर से हटकर रेल पटरी के समीप होनी थी। वाँछनीय माँग ये थें कि यह स्थान नौसेना बंदरगाह के करीब हो और यहाँ का मौसम स्फूर्तिदायक व संतुलित हों तथा उपरोक्त विशेष प्रयोजन के लिए पूर्णतया उपयुक्त हो।

      एज़िमला का चयन

  •  नौसेना अकादमी स्थापित करने हेतु भारतीय नौसेना द्वारा एज़िमला को अपने अनन्य एवं अनुपम वातावरण, क्षेत्र की समुद्री परंपरा तथा समृद्ध ऐतिहासिक अतीत के कारण चुना गया। केरल सरकार द्वारा प्रस्तावित 2500 एकड़ की ज़मीन तथा क्षेत्र के विकास के लिए बुनियादी आंतरिक संरचना निःशुल्क दिये जाने की सहमति देने के पश्चात् 1982 में भारत सरकार ने नौसेना के प्रस्ताव को अनुमोदन दिया। एज़िमला की महत्वपूर्ण पहाड़ी विशेषता, माउन्ट दिल्ली, 260 मीटर ऊँची है। माउन्ट दिल्ली लाइट हाउस, नौतल के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसके उत्तरी भाग में कव्वाई अप्रवाहित जल है।
  •   ऐसा माना जाता है कि ‘एज़िमला’, ‘सात पहाड़’ के लिए प्रयुक्त मलयालम समतुल्य शब्द है। यह नाम इस क्षेत्र की सीमा (क्षितिज) पर स्पष्टतया दर्शनीय प्रमुख सात पहाडों से लिया है। यह ‘एलिमला’ नाम से जाना जाता था, जिसका मतलब है ‘चूहा पहाड़’। इसका कारण संभवतः यह हो सकता है कि यहाँ के जंगली क्षेत्र में बहुतेरे चूहे, खरगोश या मंगूस जैसे जीव रहते हैं। एज़िमला नाम ‘एज़िल मलई’ से लिया गया जिसका मतलब है, खूबसूरत ज़मीन (भूक्षेत्र)। इससे जुड़ी लोक-कथा यह है कि ये सातों पहाड़, ऋषभद्रि पहाड़ के हिस्से हैं और प्रभु हनुमान जब मृतसंजीवनी तथा अन्य औषधियों से युक्त पहाड़ लेकर लंका की ओर जा रहे थे तब इसका एक हिस्सा टूटकर नीचे ज़मीन जा गिरा था और वही हैं ये सात पहाड़।
  •  पिछले 1500 सालों से इस क्षेत्र के इतिहास के संबंध में कई वृत्त-चित्र (डॉक्युमेन्टरी) बनाये गये। सम्राट अशोक के बाद वियजनगरम सम्राट और इसके बाद टिपु सुलतान ने इस क्षेत्र पर शासन किया था। माउन्ट दिल्ली लाइट हाउस के पास टिपु सुलतान द्वारा निर्मित किलाबंदी के खंडहर अब भी दिखाई देते हैं। तीसरे मैसूर युद्ध में ब्रिटिश ने टिपू सुलतान को हराया तथा यह क्षेत्र ब्रिटिश के हाथ में पहुँचा। जाना जाता है कि 19 वें शतक में पुर्तुगल द्वारा भी इस क्षेत्र का शासन किया गया। मालूम पड़ता है कि नाम माउन्ट दिल्ली, पुर्तुगल द्वारा दिया गया मूल नाम माउन्ट दी-एल्ली का ही परिवर्तित रूप है।

      रूपरेखा वास्तु शिल्पी का चयन

  • नौसेना मुख्यालय ने एकदम सही ढंग (न्यायोचित ढंग) से इस बात पर गौर किया कि नौसेना अकादमी का बारंबार नहीं, एक ही बार निर्माण होता है। आखिरकार, अकादमी के कमीशन होने पर नौसेना के भविष्य लीडरों को यहाँ से उभरना था। अतः इस प्रतिष्ठित नौसेना अकादमी की रूपकल्पना तैयार करने हेतु आयोजित स्पर्धा में देश के निजी वास्तुशिल्पियों को आमंत्रित किया गया।
  • 17 जनवरी 1987 को उस समय के भूतपूर्व प्रधानमंत्री (दिवंगत) श्री. राजीव गाँधी ने  अकादमी का शिलान्यास किया। उसी साल में निजी वास्तुशिल्पियों द्वारा की गई नौसेना अकादमी की रूपकल्पना तथा परामर्शदाताओं द्वारा इसका निर्माण के लिए सरकारी अनुमोदन प्राप्त हुआ। इसके परिणामस्वरूप 1988 में रक्षा सचिव के अधीन पी.एम.बी (परियोजना प्रबंधन मंडल) का गठन हुआ तथा दो स्तरीय अखिल भारतीय वास्तु शिल्पिक रूपकल्पना प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
  • इसके तुरंत बाद 1991 में देश के आर्थिक संकट के दौरान केन्द्रीय सरकार को अकादमी के निर्माण से जुड़े खर्च पर नियंत्रण लाना पड़ा। आगे चलकर ज़मीन अधिग्रहण प्रक्रिया के फलस्वरूप मुकदमेबाज़ी के चलते इस दिशा में कोई विकास नहीं हुआ था। इसके परिणाम स्वरूप एक दशक बीत जाने के बाद ही अकादमी का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जा सका।

      एज़िमला में प्रशिक्षण की शुरुआत

  •  योजना के अनुसार समग्र नौसेना अकादमी परियोजना को तीन चरणों में पूरी की जानी है। इनमें से चरण 1 के भाग के रूप में 06 अप्रैल 05 को एज़िमला में बेस डिपो शिप भा.नौ.पो ज़ामोरिन का कमीशन हुआ था। अकादमी के बेस डिपो शिप बने रहने के अतिरिक्त भा.नौ.पो ज़ामोरिन को डायरेक्ट एन्ट्री अफसरों एवं 10+2 तकनीकी प्रवेश योजना के अधीन कैडेटों को नेवल ऑरियन्टेशन कोर्स में प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी सौंपी गई। 08 अगस्त 05 को प्रथम एन.ए.सी का प्रशिक्षण प्रारंभ किया था। जनवरी 2009 को एज़िमला में भारतीय नौसेना अकादमी का उद्घाटन उपयुक्त ढंग से संपन्न होने के साथ-साथ ज़ामोरिन की प्रशिक्षण देने की ज़िम्मेदारी समाप्त हो गई। अपनी भूमिका में परिवर्तन आने के पहले सात नेवल ऑरीयन्टेशन कोर्स के कैडेट ज़ामोरिन से दीक्षांत हो गए। अब ज़ामोरिन भारतीय नौसेना अकादमी को संपूर्ण प्रशासनिक एवं संभारिकी मदद दे रही है।